थका हूँ जरुर पर हार नहीं माना हूँ...

आजकल भ्रष्टाचार और जानलेवा राजकारण के वजहसे आम आदमी को होनिवाली तकलीफ और उसकी प्रतिक्रिया ये हम हमेशा देखते और सुनते आये है.पर इसी समय में एक सच्चे भारतीय युवक की इच्छाशक्ति और उसका साहस कितना प्रबल हो सकता है ये बतानेवाली मेरे पहली प्रेरणात्मक कविता.ये कविता है उस युवक की जो उसके पास के लोगोंसे खुश नहीं है..
समाज में होने वाले घटनाओं पे खुश नहीं है..
खुश नहीं है निंदा , लालच , द्रोह दिखने वाले लोगोंसे..
जो लौट आया है अपने निश्चय और आशावाद से..
जो अकेला उनसे हिम्मत और साहस से लढने वाला है...



आक्रोश भरी दुनियां में अकेलाही चल पड़ा हूँ..
कभी रस्ते कभी कमरे, चौराहे पर मै खड़ा हूँ ..(२)

थका है शरीर पर मन से नहीं थका हूँ..
झुका है शरीर पर सोच से नहीं झुका हूँ..

गिराकर आंसू मै कभी टूट टूट रोया हूँ..(२)
कोसा नहीं किसीको , खुदपे मै रूठा हूँ...

भीड़ भरी इस बस्ती में , मै खोया हूँ..
जाने कब कैसे गुमराह मै हुवा हूँ...

भूखा कभी प्यासा , मै सोया हूँ...
उठा फिर जोश से (२), पर नहीं झुका हूँ..

नितियोंके अंधेरो में, मै घिरा हूँ...
भटक गया कभी , पर उजालो से नहीं डरा हूँ..(२)

काटोभारी इस राह का मै राही हूँ..
थका हूँ जरुर पर हार नहीं माना हूँ...

दुष्टों के वार से लतपत मै हुआ हूँ ..
साहसी हूँ मै, अभी हारा नहीं हूँ...

पीठ पीछे वार मेरे , मै साहा हूँ ...
पलट कर सिर, वार मै किया हूँ...

झूठी वादों और बातोंसे, फसाया गया हूँ...
हार गया दौड़ से (२) , पर सोच से नहीं हारा हूँ...

नोच नोच कर शिकारियोंसे , मै खाया गया हूँ...
जीर्ण हुआ हूँ , पर शरण नहीं आया हूँ...

रह गया पीछे , जित नहीं पाया हूँ..(२)
वीर हूँ मै अभी हारा नहीं हूँ...

शरीर पर वार कितने मै साहा हूँ...
बदला हर वार का लेने मै आया हूँ..
तलवार है हाथों में फिर खड़ा हुआ हूँ..
सुनो दुष्टों अंत बनके मै आया हूँ..

आशीर्वाद पृथ्वी माँ का लेके मै आया हूँ..
वीर हूँ मै विजयी बनने आया हूँ...विजयी बनने आया हूँ..
थका हूँ जरुर पर हार नहीं माना हूँ... थका हूँ जरुर पर हार नहीं माना हूँ... Reviewed by Akshay on 12:04 PM Rating: 5

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